Reflections on Mirrors
After finishing the series of shers as I interpret them regarding our roles as project deliverers or managers, I had intended to start a new series, the topic of which was to be “Reflections on Mirrors.” I have collected quite a few shers that reflect some poignant observations on human behavior by using references to mirrors. We will take a break from projects for a while to take a look at ourselves in the mirror.
कितना आसान है तस्वीर बनाना औरों की
ख़ुद को पास-ए-आईना रखना कितना मुश्किल है
शायरा : इश्रत आफ़रीन
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ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो
हक़ीक़त = reality
शायर : सईद राही
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We continue to take a look at ourselves. Polish those mirrors! Make sure the spot is on the glass and not on what it reflects.
अंदाज़ अपने देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कि कोई देखता न हो।
शायर : इब्न-ए-इन्शा
अंदाज़ = From Persian: way, manner, style
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जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना
गिला = complaint
शायर : निदा फ़ाज़ली
جب کسي سے کوئي گلہ رکھنا
شاعر : ندا فاضلي
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Maybe this reflection is the reality of what others see rather than what we perceive ourselves to be. Is Sudarshan Faakir suggesting that we should reflect on our reflection, on what our true self is?
If you do rely on the mirror, make certain that its surface is not distorted.
अपनी सूरत लगी परायी सी
जब कभी हमने आईना देका
शायर : सुदरशन फ़ाकीर
कितना आसान है तस्वीर बनाना औरों की
ख़ुद को पास-ए-आईना रखना कितना मुश्किल है
शायरा : इश्रत आफ़रीन
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ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो
हक़ीक़त = reality
शायर : सईद राही
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We continue to take a look at ourselves. Polish those mirrors! Make sure the spot is on the glass and not on what it reflects.
अंदाज़ अपने देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कि कोई देखता न हो।
शायर : इब्न-ए-इन्शा
अंदाज़ = From Persian: way, manner, style
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जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना
गिला = complaint
शायर : निदा फ़ाज़ली
جب کسي سے کوئي گلہ رکھنا
سامنے اپنے آئينہ رکھنا
شاعر : ندا فاضلي
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Maybe this reflection is the reality of what others see rather than what we perceive ourselves to be. Is Sudarshan Faakir suggesting that we should reflect on our reflection, on what our true self is?
If you do rely on the mirror, make certain that its surface is not distorted.
अपनी सूरत लगी परायी सी
जब कभी हमने आईना देका
शायर : सुदरशन फ़ाकीर
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